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यूपी बेस्ट गोना

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  उनका गाँव बहुत छोटा सा है, लेकिन हमारे फूफाजी वहाँ के सम्मानीय व्यक्ति हैं। हमारी बुआ के यहां ससुर के समय की बनाई गई लखौरी ईटों की पुरानी दो मंजिल की बड़ी सी हवेली है। गाँव के आधे से अधिक खेत और बाग उन्हीं के हैं। लेकिन अब सन्नाटा रहता है। बुआ के तीन बेटे और चार बेटियाँ हैं, अब वहाँ कोई भी नहीं रहता है। बेटे सभी कबके जाकर शहरों में बस गये। तीनों लड़किया का भी विवाह के बाद यही हाल हुआ। सब अपने-अपने कार व्यापार में इतने में इतने व्यस्त हो गये कि दबंग व्यक्तित्व की मालकिन हमारी बुआ अकेले घुल-घुल कर समय से पहले ही बूढ़ी हो गयीं। फूफा का तो खैर इधर-उधर में समय कट जाता, लेकिन हमारे चाचाओं और ताउओं में जो भी जाता अपनी बहन के अकेलेपन से घबरा जाता। लोग समझाते भी कि जीजी बेटों के पास चली जाओ, लेकिन वह भला कहाँ जाने वाली थीं! बड़ी मुष्किलों से मझिले भय्या के यहाँ जाकर मोतियाबिन्द का आपरेशन करवाया और चली आयीं। मेरी सरदियों की छुट्टियाँ हुई तो अम्मा ने जबरस्ती भेज दिया। जाकर एक महीने बुआ की सेवा कर आ। हालाकि मन तो नहीं हो रहा था लेकिन इस वादे पर कि अगर मन लगा तो रुकूँगा नही तो दो-चार दिन में आ जा...

ठेकेदार की बीवी

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  करीब पच्चीस साल की उमर की एक देहाती औरत को देखकर मैने सोचा शायद कोई माँगने वाली है. “क्या चाहिए” मैने पूछा. “मेरा भाई काम पर आया बाबूजी ?” वो बोली “कौन भाई ?” मुझे गुस्सा आ रहा था “मेरा भाई राजू बाबूजी” मीठी सी आवाज़ में वो बोली “राजू बेलदार ?” मैने उसे उपर से नीचे तक देखते हुए पूछा. उन दिनों हमारे घर में कन्स्ट्रक्षन का काम चल रहा था और राजू एक बेलदार का नाम था राजू हमारे बिल्डिंग ठेकेदार लल्लन का साला था.यानी मेरे सामने खड़ी औरत लल्लन की बीबी थी. “जी बाबूजी राजू बेलदार मेरा भाई है कल रात से घर नही आया तो मैने सोचा की आपके यहाँ देख लूँ” वो बड़ी प्यारी मुस्कुराहट के साथ बोली. मुझे उसकी मुस्कुराहट बड़ी सूंदर लगी. मैने उसे अंदर आने के लिए कहा तो वो अंदर आकर नीचे ज़मीन पर बैठने लगी “अरे नीचे नही सोफे पर बैठो” वो शरमाती हुई सोफे पर बैठ गयी .मैं सामने के बेड पर बैठ गया. “राजू तो कल शाम को पाँच बजे चला गया था और सुबह से आया नही” मैने कहा. वो गर्मियाँ के दिन थे कूलर की सीधी हवा बेड पर आ रही थी. वो सोफे पर बैठी तो शायद उसे गर्मी लग रही होगी. “कोई बात नही बाबूजी , शायद किसी दोस्त के यहाँ ...